tag:blogger.com,1999:blog-6183131987322371085.post5630666438324472639..comments2023-06-20T18:07:00.537+05:30Comments on दो शब्द : बहते जल में परछाई - राकेश रोहितराकेश रोहितhttp://www.blogger.com/profile/02722554981514384443noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-6183131987322371085.post-39334727236822328382014-08-08T23:21:25.096+05:302014-08-08T23:21:25.096+05:30परछाइयाँ असल चेहरे को छिपाती हैं/ पर शक्ल फिर भी ...परछाइयाँ असल चेहरे को छिपाती हैं/ पर शक्ल फिर भी नज़र आ ही जाते हैं/ ज़ज्ब कर लेता है हर रुप रंग नील जल/पर जरा से हिलने से स्निग्धता छलक ही जाती है/खूबसूरत न होती यह दुनियां / तो ईश्वर कब का मर गया होता !उदय कुमार सिंहhttps://www.blogger.com/profile/10297762557388686616noreply@blogger.com