इस दुनिया में सिर्फ छल चमकता है
और तुम्हारी आँखें इसलिए चमकती हैं
क्योंकि मुझको छलती हैं
वो निश्छल आँखें!
Sunday 17 May 2015
इस दुनिया में छल - राकेश रोहित
Tuesday 12 May 2015
मेरा मन वहीं - राकेश रोहित
मैं देखता हूँ फुनगी से गिरता फूल
मेरे कदम आगे बढ़ जाते हैं
और मन देखता रहता है
जहाँ वह फूल झर रहा है।
सुनो,
जब तुम उस राह से गुजरोगी
एक पल जरा देखना
मेरा मन वहीं- कहीं आसपास
ठहरा हुआ होगा!
Monday 11 May 2015
सितारे की रोशनी - राकेश रोहित
अंधेरे के सौ जंगल पार कर एक सितारे की रोशनी आपसे बतियाने आती है और आप यह सोच कर घर में बैठे हैं कि यह सितारा कल भी रहेगा!
Sunday 10 May 2015
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