प्रेम की प्रतीक्षा में
सौ फूल झरे
तब उसने मुड़ कर देखा
फिर सौ मौसम बदले
वह नहीं बदली।
वह जब भी समन्दर के किनारे गयी
उसने मुड़ कर नहीं देखा
एक तूफान जो उसके अंदर है
उसे सिर्फ समन्दर जानता है।
जो हवा मेरी सांसों में भरी है
उससे मैं उसका पता पूछता हूँ
कवि की अज्ञानता की सीमा नहीं
पर उसका प्यार अनंत है।
नदी किनारे
गीली मिट्टी पर
उसने पाँच बार सिंदूर लगाया
फिर हँस कर उसने देखा नदी को
और नदी सुहागन हो गयी।