Sunday, 17 April 2016

नदी, स्त्री और गीत - राकेश रोहित

उसने माथे पर छिड़का नदी का जल
और नदी में पांव डाल कर बैठ गयी
धीरे- धीरे उसके पैर से फूटने लगी जड़ें
मैंने धरती की सबसे सुंदर नदी को
स्त्री के रूप में देखा
उसकी आंखों में भयावह एकांत की स्मृतियाँ थीं
वह पीड़ा का गीत गा रही थी!