दो ही शब्द हैं दुनिया में!
एक जो तुम कहती हो,
एक जो मैं लिखता हूँ!!
Friday, 19 October 2012
हरसिंगार और तुम्हारा इंतज़ार - राकेश रोहित
नदी के उस किनारे पर जहाँ सूरज सुनहरे चादर में मुँह छिपाकर सो गया और खामोश बहती हवा में तुम्हारी हँसी खिलखिलाकर फैल गयी वहीं हरसिंगार के पेड़ के नीचे एक नाव तुम्हारा इंतज़ार करती है...!!
हरसिंगार तुम स्वप्निल से पनपे रात्रि के शुभ्र प्रहार में नहीं हुए जर्जर नहीं हुए बूढ़े तुम अनंत से अनश्वर फूलों से सपने भर दो आँखों में उच्चरित कर दो मंगल द्रुपद . मेरी एक कविता से . मंजुल भटनागर
achha hai, thodi aur gahrai men jane ki jarurat hai........
ReplyDeleteनाव में महक रहे हैं
ReplyDeleteझरते हरसिंगार भी
हरसिंगार तुम
ReplyDeleteस्वप्निल से
पनपे रात्रि के
शुभ्र प्रहार में
नहीं हुए जर्जर
नहीं हुए बूढ़े
तुम अनंत से अनश्वर
फूलों से सपने भर दो
आँखों में
उच्चरित कर दो मंगल द्रुपद .
मेरी एक कविता से .
मंजुल भटनागर
wah!! bahut sundar
Deleteहरसिंगार और इंतज़ार का मुझे भी पुराना नाता सा लगता है... सुंदर रचना
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