Friday 19 October 2012

हरसिंगार और तुम्हारा इंतज़ार - राकेश रोहित

नदी के उस किनारे पर 
जहाँ सूरज सुनहरे चादर में मुँह छिपाकर सो गया 
और खामोश बहती हवा में 
तुम्हारी हँसी खिलखिलाकर फैल गयी 
वहीं हरसिंगार के पेड़ के नीचे 
एक नाव  तुम्हारा इंतज़ार करती है...!!

हरसिंगार और तुम्हारा इंतज़ार / राकेश रोहित 

5 comments:

  1. achha hai, thodi aur gahrai men jane ki jarurat hai........

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  2. नाव में महक रहे हैं
    झरते हरसिंगार भी

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  3. हरसिंगार तुम
    स्वप्निल से
    पनपे रात्रि के
    शुभ्र प्रहार में
    नहीं हुए जर्जर
    नहीं हुए बूढ़े
    तुम अनंत से अनश्वर
    फूलों से सपने भर दो
    आँखों में
    उच्चरित कर दो मंगल द्रुपद .
    मेरी एक कविता से .
    मंजुल भटनागर


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  4. हरसिंगार और इंतज़ार का मुझे भी पुराना नाता सा लगता है... सुंदर रचना

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