दो ही शब्द हैं दुनिया में! एक जो तुम कहती हो, एक जो मैं लिखता हूँ!!
शब्दों में चमक थी/ पर शब्दों का अर्थ खुलकर सामने नहीं आता था।
वह धीरे-धीरे रिसता था और कुछ उनकी मुद्राओं में छुपा रह जाता था।
यह चमकीले शब्दों से भरे मनुष्यता के धूसर दिन थे।
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