Tuesday 12 May 2015

मेरा मन वहीं - राकेश रोहित

मैं देखता हूँ फुनगी से गिरता फूल
मेरे कदम आगे बढ़ जाते हैं
और मन देखता रहता है
जहाँ वह फूल झर रहा है।

सुनो,
जब तुम उस राह से गुजरोगी
एक पल जरा देखना
मेरा मन वहीं- कहीं आसपास
ठहरा हुआ होगा!

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