दो ही शब्द हैं दुनिया में! एक जो तुम कहती हो, एक जो मैं लिखता हूँ!!
संशय क्यों हर प्रेम पर छाया है?
क्योंकि प्रेम पृथ्वी है और संशय आकाश! आकाश की छाया डोलती है पृथ्वी की देह पर और पृथ्वी के धुले चेहरे पर आकाश के चुंबनों के निशान हैं!
क्योंकि प्रेम मैं हूँ और संशय तुम!
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