दो ही शब्द हैं दुनिया में! एक जो तुम कहती हो, एक जो मैं लिखता हूँ!!
नदियों ने सौ बार कहा है वे चाहती हैं तुम्हें मुझे एक बार कहने के लिए भी नदी के एकांत में जाना पड़ता है।
यह जो नदी की तरह तुम बहती रहती हो इस मरु थल में क्या तुमने किसी पुकार पर कभी मुड़ कर नहीं देखा!
कहाँ देखती हैं नदियाँ मुड़ के किसी को ... फिर भागीरथी हो तो मुड़ भी आयें ...
कहाँ देखती हैं नदियाँ मुड़ के किसी को ...
ReplyDeleteफिर भागीरथी हो तो मुड़ भी आयें ...