Tuesday 15 October 2019

हलन्त की तरह - राकेश रोहित

मैं हलन्त की तरह अर्द्ध उच्चरित रहा 
मैं फूल की तरह झर गया हूँ 
मुझे स्वप्न की तरह भूल गयी हो तुम 
मैंने दृश्य की तरह तुम्हें स्मृति में समेट लिया है

तुम्हें पुकारती हुई एक बच्ची आती है 
उसकी हँसी तुमसे कितनी मिलती है!

3 comments:

  1. बिखरिये मत कि ये हलन्त बड़े ही बलवन्त होते हैं । मायने बदल कर रख देते हैं ।

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  2. बहुत सुंदर सृजन।
    मन को स्पर्श करता।

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  3. बहुत सुन्दर सृजन
    सादर

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