दो ही शब्द हैं दुनिया में! एक जो तुम कहती हो, एक जो मैं लिखता हूँ!!
बहते जल में नहीं बह जाती है मेरी परछाई! जो मेरी जिद है कविता में हर वक्त बची रहती है।
परछाइयाँ असल चेहरे को छिपाती हैं/ पर शक्ल फिर भी नज़र आ ही जाते हैं/ ज़ज्ब कर लेता है हर रुप रंग नील जल/पर जरा से हिलने से स्निग्धता छलक ही जाती है/खूबसूरत न होती यह दुनियां / तो ईश्वर कब का मर गया होता !
परछाइयाँ असल चेहरे को छिपाती हैं/ पर शक्ल फिर भी नज़र आ ही जाते हैं/ ज़ज्ब कर लेता है हर रुप रंग नील जल/पर जरा से हिलने से स्निग्धता छलक ही जाती है/खूबसूरत न होती यह दुनियां / तो ईश्वर कब का मर गया होता !
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